कविता बनती है- Kavita Banti hai...


*कविता बनती है*

कविता भाव से बनती है
उदासी में करुणा बनती है
खुशी में खुशहाली
बद में बदहाली
कविता एक भाविका होती है
साहस जब लेती है तो
शुर वीरांगना बनती है
कविता बस लफ़्ज़ों से नही भावों से बनती है

जब दिल है रोता तो सबके
आंसू छलकाती हुई चलती है
कविता के अंग नही है यारों,
पर कविता भी हँसती गाती
मुस्काती रोती गुनगुनाती हुई चलती है

कविता बनती है
जब हृदय के भाव
लेखनी बन जाते हैं
कविता बनती है
जब उर के अश्रु स्याही बनते हैं
कविता बनती है जब भाव बनते है
फिक्र शब्दो को होती नही है
बस अपने आप में जुड़ते चले जाते हैं
बस ताल में ताल भाव में भाव मिलते चले जाते हैं
कविता भावों से बनती है
कभी करुणा कभी वीरांगना
रसों में रस घुल कर एक कविता बनती है

कविता लिखना भी आसान नही है "जानी"
"विष" का प्याला कवि के पीने से बनती है

कविता की क्या राग सुनाऊ
कविता अपनों के अहसास से बनती है..
कविता भावों से बनती है

समय नही लेती है वो
सजती खुद से चली जाती है..

कविता बस आँसुओ को
खुशियों को सिमेटते हुए बनती चली जाती है

कविता बस रूप में ढलती चली जाती है..
रूप न होता उसका कोई पर
सुंदर स्त्री की भांति लुभाती सबको चली जाती है...

बस इतना कहना चाहूंगी कि
कविता बस बनती चली जाती है
भावों में नदी सी बहती चली जाती है…..

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