My views on Poem “Tum meri jaan ho Raziya bee” by Piyush Mishra


तुम मेरी जान हो रज़िया बी.. कवि - पीयूष मिश्रा

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जो था वो सच था
जैसा मैंने सोचा था..
रंडीखानों की हकीकत की
कल्पना ने जैसे हृदय मेरा कचोटा था...
औरत और आदम का रिश्ता मैंने 
जैसा पलको में बनाया था...
आज के कलयुग में मैंने 
ऐसा ही बयाँ समझा था...
सच था बहुत कड़वा था
शब्दो से बोलना आसान था...
पर हक़ीक़त सहना एक अफसान था
जैसा मैंने सोचा था
हक़ीक़त का परवाना उससे ऊंचा था
रज़िया बी के किस्से ने
हृदय मेरा कचोटा था
सोचती थी तो दिल मेरा रोता था
पर घाव इतना गहरा होगा
मैंने कभी सपने में न सोचा था..
जैसा था अच्छा था
एक शायर का बयान सच्चा था...!

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